2 महीने पहले से चल रही थी सत्ता परिवर्तन की तैयारी, कोरोना के कारण 3 दिन पहले शिवराज पर मुहर

शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने की इबारत उसी समय लिखी जा चुकी थी, जब भाजपा नेतृत्व ने लगभग 2 महीने पहले उन्हें बुलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में लेने और अन्य विधायकों से संपर्क करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि, उस समय यह नहीं कहा गया था कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। सीएम बनाने की प्रक्रिया 3 दिन पहले शुरू हुई, जब संघ और शीर्ष भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री पद के लिए विचार शुरू किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गृहमंत्री अमित शाह को इसके लिए हरी झंडी दे दी। इस बातचीत का निष्कर्ष निकला कि शिवराज जमीनी नेता हैं और पूरे प्रदेश में उनकी समान पकड़ है।


पहली पंसद थे शिवराज


कोरोना की स्थिति को देखते हुए भाजपा नेतृत्व कोई नया प्रयोग भी नहीं करना चाहता था। प्रशासनिक अनुभव के लिहाज से शिवराज ही सबसे अच्छी पसंद थे। प्रधानमंत्री ने रविवार दिन में चार बार शिवराज से चर्चा की। जब यह जानकारी बाहर आई और शिवराज से पूछा गया तो उन्होंने इसे टाल दिया। हालांकि इस चर्चा में नई सरकार के स्वरूप को लेकर बातचीत की गई। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री ने बहुत ही स्पष्ट राय दी कि कोरोना के चलते पूरा कार्यक्रम बिल्कुल सादगीपूर्ण होना चाहिए और इसमें कम से कम लोग होने चाहिए।


कोरोना से लड़ाई में जुटेंगे


उन्होंने शिवराज को यह भी सलाह दी कि शपथ ग्रहण के तत्काल बाद वह प्रदेश में कोरोना की स्थिति से निपटने में जुट जाएं। शिवराज 24 को विधायक दल की बैठक कर 25 को गुड़ी पड़वा के मौके पर शपथ लेना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री कोरोना की स्थिति को देखते हुए एक दिन का भी रिस्क लेना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के जरिए विधायकों की सहमति लेने का फाॅर्मूला सुझाया।


सिंधिया समेत प्रदेश के नेताओं से की थी चर्चा


अमित शाह ने एक-एक कर सिंधिया समेत प्रदेश भाजपा नेताओं से मुख्यमंत्री की पसंद को लेकर अनौपचारिक चर्चा की और फीडबैक से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। साेमवार सुबह जेपी नड्‌डा और पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बैठक कर पूरी प्रक्रिया पर चर्चा की। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को इसकी जानकारी दी गई। शुरुआत में शिवराज के साथ चार–पांच वरिष्ठ मंत्रियों को शपथ दिलाने का विचार था, लेकिन पार्टी नेतृत्व का मानना था कि कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को तत्काल मंत्रिमंडल में लेने से गलत संदेश जाएगा, इसलिए फिलहाल मुख्यमंत्री अकेले ही शपथ लें और जैसे ही कोरोना की परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तब मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाए।